Sunday, December 23, 2018

भेगाळली भुई... मराठी कविता... Marathi Poem... Marathi Kavita...






भेगाळल्या या भुईची
तहान कशी भागावी ?
काळ्या मातीने तिची
कहाणी कशी सांगावी ?
                                                               
रोजच आटते, सुकते
नाही पाण्याचा थेंब
या भेगाळल्या भुईवर
कसा उगवेल कोंब ?

हवालदिल दिसे रोज
आपला शेतकरी राजा
पावसाविना तडपे रोज
ही नगरीतली प्रजा

सूर्य रोज ओकतो आग
उन्हाच्या झोंबतात झळा
आता तरी ये, वरूणराजा
किती सोसाव्यात कळा ?

पावसा, तू बरस ना
काळी माती तृप्त कर
हिरवीगार होऊ दे धरा
तू आभाळाचे छत्र धर

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