मेरे मन से उतरकर,
जब तू बसता हैं मेरी सांसों में...
मैं मुझे नहीं जान पातीं...
क्या हो रहा हैं मेरे अंदर... ?
मेरे तन-बदन में...
समझ नहीं आता हैं मुझे... ?
बस...
तेरी सांसों को मेरे अंदर
समेटना अच्छा लगता है मुझे...
तुझे लपेटकर सोना
बहुत भांता हैं मेरे मन को...
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